योग आध्यात्मिक, शारीरिक और मानसिक प्रथाओं का एक समूह है जिसकी उत्पत्ति प्राचीन भारत में हुई थी। योग का शाब्दिक अर्थ है जोड़ना। योग शारीरिक व्यायाम, शारीरिक मुद्रा (आसन), ध्यान, सांस लेने की तकनीकों और व्यायाम को जोड़ता है।
इस शब्द का अर्थ ही ‘योग’ या भौतिक का स्वयं के भीतर आध्यात्मिक के साथ मिलन है। यह सार्वभौमिक चेतना के साथ व्यक्तिगत चेतना के मिलन का भी प्रतीक है, जो मन और शरीर, मानव और प्रकृति के बीच एक पूर्ण सामंजस्य का संकेत देता है। योग के अभ्यास का उल्लेख ऋग्वेद और उपनिषदों में भी मिलता है।
पतंजलि का योगसूत्र (दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व), योग पर एक आधिकारिक ग्रंथ है और इसे शास्त्रीय योग दर्शन का एक मूलभूत ग्रंथ माना जाता है।
आधुनिक समय के दौरान और विशेष रूप से पश्चिम में, योग को बड़े पैमाने पर शारीरिक व्यायाम के साथ-साथ ध्यान और मुद्राओं के रुप में अपनाया जा रहा है। हालांकि, योग का उद्देश्य स्वस्थ मन और शरीर से परे है।
योग के प्रकार (Yoga Poses)
योग शारीरिक और मानसिक चेतना को बढ़ाने में मदद करता है। आधुनिक योग व्यायाम, शक्ति, लचीलापन और श्वास पर ध्यान देने के साथ विकसित हुआ तरीका है। आधुनिक योगी की कई शैलियां (Yoga Poses) हैं। योग की विभिन्न प्रकार और शैलियों के बारे में नीचे विस्तार से जानकारी दी जा रही है –
अष्टांग योग – यह योग शैली पिछले कुछ दशकों के दौरान सर्वाधिक लोकप्रिय हुई थी। योग के इस प्रकार में, योग की प्राचीन शिक्षाओं का उपयोग किया जाता है। अष्टांग योग, तेजी से सांस लेने की प्रक्रिया को जोड़ता है। इसमें मुख्य रूप से 6 मुद्राओं का समन्वय है।
विक्रम योग – विक्रम योग मुख्य रूप से एक कृत्रिम रूप से गर्म कमरे में किया जाता है। जहां का तापमान लगभग 105 डिग्री (105° फारेनहाइट) और 40 प्रतिशत आर्द्रता होती है। इसे हॉट योग (Hot Yoga) के नाम से भी जाना जाता है। इस योग में कुल 26 पोज होते हैं और दो सांस लेने के व्यायाम का क्रम होता है।
हठ योग – यह किसी भी योग के लिए एक सामान्य शब्द है, जिसके द्वारा शारीरिक मुद्राएं सीखी जाती है। हठ योग, मूल योग मुद्राओं के परिचय के रूप में काम करता हैं।
अयंगर योग – योग के इस प्रकार में विभिन्न प्रॉप्स (सहारा) जैसे कम्बल, तकिया, कुर्सी और गोल लम्बे तकिये इत्यादि का प्रयोग करके सभी मुद्राओं को किया जाता है।
जीवामुक्ति योग – जीवामुक्ति का अर्थ है “जीवित रहते हुए मुक्ति।” योगा का यह फार्म साल 1984 के आस पास उभर कर सामने आया था। इसके बाद इसे आध्यात्मिक शिक्षा और योग प्रथाओं को इसमें शामिल किया गया था। जीवामुक्ति योग में किसी भी मुद्रा (पोज) पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय दो मुद्राओं के बीच की गति को बढ़ाने पर ध्यान दिया जाता है। इस ध्यान (फोकस) को विनयसा कहा जाता है। प्रत्येक कक्षा में एक विषय होता है, जिसे योग शास्त्र, जप, ध्यान, आसन, प्राणायाम और संगीत के माध्यम से खोजा जाता है। जीवामुक्ति योग में शारीरिक रूप से तीव्र क्रियाएं की जाती है।
कृपालु योग – कृपालु योग, साधक को को उसके शरीर को जानने, उसे स्वीकार करने और सीखने की शिक्षा देता है। कृपालु योग के साधक आवक देख कर अपने स्तर का अभ्यास करना सीखते हैं। इसकी कक्षाएं श्वास अभ्यास और शरीर को धीरे- धीरे स्ट्रेच करने के साथ शुरू होती हैं। बाद में विश्राम की एक श्रृंखला भी होती है।
कुंडलिनी योग – यहां कुंडलिनी का अर्थ, सांप की तरह कुंडलित होने से है। कुंडलिनी योग, ध्यान की एक प्रणाली है। इसके द्वारा दबी हुई आंतरिक ऊर्जा को बाहर लाने का काम किया जाता है।
अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस
अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस हर साल 21 जून को मनाया जाता है। आपको बता दें कि 21 जून का दिन साल का सबसे बड़ा दिन होता है और योग भी मनुष्य को दीर्घायु प्रदान करता है। इसलिए इस दिन, योग दिवस मनाया जाता है। पहला योग दिवस 21 जून 2015 को मनाया गया था, जिसकी पहल भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी नें 27 सितम्बर 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने भाषण से की थी।
इसके बाद 11 दिसंबर 2014 को संयुक्त राष्ट्र के 177 सदस्यों द्वारा 21 जून को, अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस के रुप में मनाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई थी। भारत के पीएम के योग दिवस के प्रस्ताव को 90 दिनों के अन्दर ही पूर्ण बहुमत से पारित कर दिया गया था, जो संयुक्त राष्ट्र संघ में किसी भी प्रस्ताव के लिए सबसे कम समय है।